नव नालंदा महाविहार डीम्ड यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी फॉर बुद्धिस्ट स्टडी के 21 वें अधिवेशन हुआ शुरु,नालंदा के गौरवशाली अतीत की हुई चर्चा
नव नालंदा महाविहार डीम्ड यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी फॉर बुद्धिस्ट स्टडी के 21 वें अधिवेशन हुआ शुरु,नालंदा के गौरवशाली अतीत की हुई चर्चा
नालंदा यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो सुनैना सिंह ने कहा कि महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य आज भी प्रासंगिक हैंं. उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही मूल्यवान हैं, जितनी पहले थी. बुद्ध के दर्शन मात्र से अहिंसा, करुणा और शान्ति की प्रेरणा मिलती है. नव नालंदा महाविहार डीम्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी फॉर बुद्धिस्ट स्टडी के 21 वें अधिवेशन में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए शुक्रवार को उन्होंने यह कहा. अधिवेशन का उद्घाटन दीप प्रज्वलित कर अतिथियों के द्वारा किया गया. प्रो सिंह ने कहा कि दुनिया महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का लोहा मानता है. धर्मचक्र के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उनके उस उपदेश से एशियाई विज़डम मिलता है. उन्होंने कहा बुद्ध की शिक्षा जन-जन की शिक्षा है. शिक्षक बुद्ध की शिक्षाओं को केवल विद्यार्थियों तक नहीं बल्कि समाज तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं पहुचाएं. उनका सद्भाव भी समाज में पहुंचाना हम सब का दयित्व और धर्म है. नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय को 70 साल का सफर तय करने पर उन्होंने बधाई दिया. भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद द्वारा स्थापित यह शिक्षण संस्थान केवल भारत का ही नहीं, बल्कि एशिया का ऐतिहासिक है. नालंदा के गौरवशाली अतीत की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नव नालंदा महाविहार और नालंदा विश्वविद्यालय के ऊपर गहरा उत्तरदायित्व है कि वे भारतीय विद्या के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करें. बौद्ध धर्म के वैश्विक प्रासंगिकता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नालंदा की संस्कृति और शैक्षणिक परंपरा के साथ-साथ बौद्ध धर्म का फिर से पुनरुत्थान करने का बीड़ा उठाने की जरूरत है. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह टूटा प्रासाद महिमा का खंडहर है. राजगीर और बोधगया को ज्ञान की धरती बताते हुए कहा है नालंदा विश्वविद्यालय को प्राचीन गौरव पर आधारित शिक्षण संस्थान बनाने की कोशिश की जा रही हैं. समारोह के विशिष्ट अतिथि
डेक्कन कॉलेज पुणे के चांसलर प्रो. अरविन्द पी जामखेड़कर ने कहा कि जैन, बौद्ध या आजीवक का अध्ययन एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं. ब्राह्मण एवं श्रमण भी एक दूसरे को समन्वित करते हैं. समारोह की अध्यक्षता करते हुए आईएसबीएस के चेयरमैन प्रो एसपी शर्मा ने बुद्ध को आज भी प्रासंगिक बताया. उन्होंने कहा कि आई एस बी एस की यात्रा संघर्ष भरी रही है. इस अवसर पर कुरुक्षेत्र विवि के डॉ. डी.सी. जैन , डॉ. तृप्ति जैन, ललित गुप्ता एवं अन्य ने विचार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन सुरेश ने की।इस अवसर पर महाविहार के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि युवा अध्येताओं में नई सक्रियता आनी चाहिए ताकि वे ज्ञान के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकें. पालि, बौद्ध अध्ययन, संस्कृत, अपभ्रंश में उन्हें आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि बुद्ध को जानने के लिए बुद्धवादी होना आवश्यक नहीं है. इसके लिये आस्था, विश्वास व समझ महत्त्वपूर्ण है. अध्ययन में कटपेस्ट नहीं मौलिकता होनी चाहिए. ज्ञान से आलोक मिलता है. नालंदा ऐ पहली बार आई एस बी एस के अधिवेशन को दुहराया गया है. अतीत की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नालंदा के भग्नावशेष बहुत कुछ कहते हैं. नालंदा महाविहार में हर विद्या पढ़ाई जाती थी. उस श्रेष्ठ विद्या को नये सिरे से दुनिया के मानचित्र पर लाने की कोशिश जारी है.एएसआई के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक पुरातत्व विशेषज्ञ पद्मश्री डा के के मुहम्मद ने कहा कि पटना क्षेत्र में राजगीर नया स्तूप दुर्लभ है. उसका निर्माण रेलिक पर हुआ है. उसको लक्षित करते हुए उन्होंने सुझाव दिया है कि वहाँ पुरातत्व का कार्य होना चाहिए. केसरिया स्तूप और विक्रमशिला की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उसकी खुदाई से नई दृष्टि मिली है. नालंदा के गौरवशाली और वैभवशाली अतीत की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि 1100 के आसपास नालंदा विवि को नष्ट कर दिया गया था. डॉ मुहम्मद ने कहा कि महात्मा बुद्ध के घुंघराले बालों को देख कर अलग अलग देश का लोग बताते थे. देवानां प्रियं की अलग चर्चा हुई. शशि कोटे का भाव अर्थ निकाला गया. शशि का अर्थ चंद्रमा है. स्तम्भ की कहानी को विश्लेषित किया गया. सांची स्तूप को 1880 में खोजा गया. दीपवंश में उल्लेख है कि बुद्ध के महाप्रयाण के दो सौ साल के बाद अशोक राजगद्दी पर बैठे थे. विश्व धरोहर के पास के गांव कपटिया से नालंदा के बारे में उल्लेख मिला. यहाँ के यूरेका मोमेंसस के बारे में लोगों को पता नहीं है. उसके बारे में बताने के लिए विश्वविद्यालय को आगे आना चाहिए.
21 वें वार्षिक अधिवेशन के मौके पर प्रो. एस पी शर्मा की पुस्तक बौद्ध ज्ञान का महासागर : खंड 10 और 11, प्रो वैद्यनाथ लाभ की पुस्तक पालि सद्दबोध, प्रो राम नक्षत्र प्रसाद की पुस्तक जिन दीप वंश का लोकार्पण मुख्य अतिथि एवं अन्य के द्वारा किया गया. प्रारंभ में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मंगल पाठ तथा मंगलाचरण किया गया.
नव नालंदा महाविहार डीम्ड यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय इंडियन सोसायटी फॉर बुद्धिस्ट स्टडी के 21 वें अधिवेशन हुआ शुरु,नालंदा के गौरवशाली अतीत की हुई चर्चा
Reviewed by News Bihar Tak
on
October 01, 2021
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