जैन धर्मावलंबियों के लिए अति महत्वपूर्ण 10 दिवसीय दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म की आराधना कर सभी मंदिरों में धूप दशमी मनाया गया
जैन धर्मावलंबियों के लिए अति महत्वपूर्ण 10 दिवसीय दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म की आराधना कर सभी मंदिरों में धूप दशमी मनाया गया
जैन धर्मावलंबियों के लिए अति महत्वपूर्ण 10 दिवसीय दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म की आराधना कर सभी मंदिरों में धूप दशमी मनाया गया।भगवान मुनिसुव्रतनाथ की गर्भ, जन्म, तप एवं ज्ञान स्थली दिगम्बर जैन कोठी राजगीर में इस महापर्व को लेकर धर्मशाला मंदिर, जन्मभूमि मंदिर, पंचपहाड़ी की चोटियों पर स्थित जैन मंदिरों में पारंपरिक तरीके से पूजन एवं शांतिधारा आदि का कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रातः सभी जैन धर्मावलंबियों द्वारा पारंपरिक केसरिया वस्त्र पहनकर सर्वप्रथम धर्मशाला मन्दिर में भव्य पंचामृत अभिषेक किया तत्पश्चात वीरशासन धाम तीर्थ में स्थापित विशाल लाल पाषाण से निर्मित भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा का अभिषेक, शांतिधारा, पंचामृत अभिषेक कर पुष्पवृष्टि की गई एवं संध्या समय जन्मभूमि मन्दिर, धर्मशाला मंदिर, सरस्वती भवन, वीरशासन धाम तीर्थ, गर्भगृह मन्दिर में सभी धर्मावलंबियों ने धूप चढ़ाकर अपने कर्मो का निर्जरा की। इसे हम सुगंधदशमी के नाम से भी जानते है। रवि कुमार जैन ने धुपदशमी उत्तम तप धर्म केविषय मे जानकारी देते हुए कहा कि आत्म शुद्धि के लिये इच्छाओं का रोकना तप है। मानसिक इच्छायें साँसारिक बाहरी पदार्थों मैं चक्कर लगाया करती हैं अथवा शरीर के सुख साधनों में केन्द्रिय रहती हैं। अतः शरीर को प्रमादी न बनने देने के लिये बहिरंग तप किये जाते हैं और मन की वृत्ति आत्म-मुख करने के लिये अन्तरंग तपों का विधान किया गया है। दोनों प्रकार के तप आत्म शुद्धि के अमोध साधन हैं। प्रत्येक दशा में तप को महत्त्वपूर्ण माना है। जिस प्रकार, स्वर्ण (सोना) अग्नि में तपाए जाने पर अपने शुद्ध स्वरूप में प्रगट होता है; उसी प्रकार, आत्मा स्वयं को तप-रूपी अग्नि में तपाकर अपने शुद्ध स्वरूप में प्रगट होता है। मात्र देह की क्रिया का नाम तप नहीं है अपितु आत्मा में उत्तरोत्तर लीनता ही वास्तविक ‘निश्चय तप’ है। ये बाह्य तप तो उसके साथ होने से ‘व्यवहार तप’ नाम पा जाते हैं। यही पंडित जी प्रस्तुत पंक्तियों में दर्शाते हैं। उत्तम तप का बखान सारे ग्रंथों में किया गया है, क्योंकि यह कर्म-रूपी पत्थर को तोड़ने के लिए वज्र के समान है।संजीत जैन ने तप धर्म पर बताया कि - घमंड एक गुब्बारे की तरह है।जिस तरह गुब्बारे में हवा भरी रहती है। वह ऊपर की ओर उठता रहता है। जैसे ही हवा निकल जाती है। गुब्बारा भी जमीन पर गिर जाता है।उसी प्रकार घमंडी व्यक्ति भी जब तक उसका घमंड रहता है, तब तक घमंड के नशे में चूर होकर अपने आप को ही सब कुछ समझता है।उत्तम तप धर्म घमंड को दूर करके व्यक्ति को विनम्र बनाता है।इस अवसर पर संजीत जैन, मुकेश जैन, आशीष जैन, रवि कुमार जैन, मनोज जैन, उपेन्द्र जैन, ज्ञानचंद जैन, पवन जैन, अनूप जैन, संपत जैन, प्रेमलता जैन, शिल्पी जैन, खुशबू जैन, बविता जैन, संतोष जैन, गुड़िया जैन, रूपा जैन, बिट्टु जैन,गीता जैन, आयुषी, आरती, निधि, स्वाति, नेहा जैन, संकेत, अमन, गौतम, अक्षत, छोटू,सहीत अन्य लोग उपस्थीत थे।
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Reviewed by News Bihar Tak
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September 16, 2021
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