राजगीर में आयोजित महापर्व पर्युषण के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म की गई आराधना।
जैन धर्मावलंबियों के 10 दिवसीय पर्युषण महापर्व के आठवें दिन त्याग धर्म की आराधना की गई। तेईस तीर्थकरों के समोशरण से पावन भूमि राजगीर में इस पर्व को लेकर जैन अनुयायियों में काफी उत्साह देखी जा रहा है। अन्य प्रांतों से आये तीर्थ यात्री, बच्चे, महिलाएं सभी इस धार्मिक आयोजन में भाग लेकर काफी उत्साहित दिख रहे है। धर्मशाला मंदिर, जन्मभूमि मंदिर, वीरशासन धाम तीर्थ, पंच पहाड़ी के सभी मंदिरों में प्रातः पूजन, अभिषेक, शांतिधारा के कार्यक्रम नित्य आयोजित किये जा रहे है। सभी भक्तजनों ने प्रातः मंदिर जी में श्री जी को स्वर्ण एवं रजत कलशों से अभिषेक, शांतिधारा के तत्पश्चात देवशास्त्र गुरु की पूजा, समुच्च चौबीसी पूजा, दसलक्षण धर्म पूजा, उत्तम त्याग धर्म की आराधना की। संध्या समय महाआरती के आयोजन भी किया गया ।
जैन शास्त्रों में उत्तम त्याग धर्म को विशेष माना गया है क्योंकि यह हमें असहाय लोगों के प्रति सहयोग की भावना रखना सिखलाता है। दीन दुःखी जीवों के दुःख दूर करने के लिए आवश्यकता के अनुसार दान करना दयादान बताता है। यदि कोई दुखी दरिद्री भूखा हो तो उसको भोजन कराना चाहिये, यदि निर्धन विद्यार्थी हो तो उसको पुस्तक, ज्ञानाभ्यास का साधन जुटा देना चाहिये। गरीब रोगियों को मुफ्त दवा बाँटना उनेक लिये चिकित्सा का प्रबंध कर देना, यदि दीन दरिद्र दुर्बल जीव को कोई सता रहा हो तो उसकी रक्षा करना, भयभीत जीव का भय मिटा कर निर्भय करना, नंगे को वस्त्र देना, प्यासे को पानी पिलाना तथा अन्य किसी विपत्ति में फँसे हुए जीव का करुणा भाव से सहायता करना, किसी अनाथ का पालन पोषण करना। यह सब दयादान या करुणादान सिखाता है।दशलक्षण धर्म पर बताते हुए रवि कुमार जैन ने कहा कि - अक्सर लोग धन या पैसे को ही दान समझते लेते हैं लेकिन शास्त्रों में मैं तो दान भी चार प्रकार का बताया है औषधी दान, अभय दान, शास्त्र दान, आहार दान शास्त्रों में कहीं पर भी रुपया या धन के त्याग को दान नहीं कहा है जिस तरह से बाढ़ के पानी की गंदगी अगर हमारे घर में घुस जाती है उसी तरह से यह धन रूपी बाढ़ की गंदगी हमारे चैतन्य घर में अगर आ गई है तो उसे दोनों हाथों से बाहर निकाल देना चाहिए तभी हमारा चैतन्य घर स्वच्छ और निर्मल रह सकता है औषधी दान, अभय दान, शास्त्र दान, आहार दान को भी व्यवहार से ही दान कर सकते हैं। इस पर्युषण पर्व पर प्रत्येक भव्य आत्मा को चाहिए कि वह त्याग गुण के धनी ज्ञानवान व्यक्ति की अत्यंत विनय करें और उसके बताए मार्ग का अनुसरण करें ताकि वह खुद भी धर्म के दस लक्षणों को समझकर ज्ञानावान हो सके अतः सभी लोग ऐसी अति कल्याणकारी उत्तम त्याग धर्म को धारण कर अपना कल्याण करें यही मंगल भावना भाते है।आगे बताते हुए प्रबंधक मुकेश जैन ने कहा कि - त्याग और दान में बहुत सूक्ष्म अन्तर है। उत्तम त्याग धर्म में केवल दान देने का मतलब ही त्याग नहीं होता। शास्त्रों के अनुसार दान देना पुण्य का कार्य है, जबकि त्याग करना धर्म है। जब आत्मा से हम सांसारिक चीजो का त्याग करने की ओर बढ़ जाते है तब यह उत्तम त्याग कहलाता है। जैन धर्म के अनुसार दशलक्षण पर्व में जीव को अपनी आत्मा से मन वचन काय से शुद्ध होना चाहिए। मन में वैर भाव की भावना से दूर रहना चाहिए।इस कार्यक्रम में संजीत जैन, मुकेश जैन, आशीष जैन, रवि कुमार जैन, मनोज जैन, चंदन जैन, मनीष जैन, उपेन्द्र जैन, पवन जैन, ज्ञानचंद जैन, अनूप जैन, अशोक जैन, संपत जैन, खुशबू जैन, प्रेमलता जैन, संतोष जैन, शिल्पी जैन, गुड़िया जैन, कोमल जैन, नैना जैन, गीता जैन, आयुषी, रिया, नेहा, आरती, स्वाति, संकेत, अमन, गौतम, अक्षत, रौशन, छोटू, बिट्टू सहीत अन्य लोग उपस्थीत थे।
राजगीर में आयोजित महापर्व पर्युषण के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म की गई आराधना
Reviewed by News Bihar Tak
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September 18, 2021
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