राजगीर में जैन धर्मावलंबियों के 10 दिवसीय पर्युषण महापर्व का छठे दिन उत्तम संयम धर्म की आराधना की गई
राजगीर में जैन धर्मावलंबियों के 10 दिवसीय पर्युषण महापर्व का छठे दिन उत्तम संयम धर्म की आराधना की गई
राजगीर में जैन धर्मावलंबियों के 10 दिवसीय पर्युषण महापर्व का छठे दिन उत्तम संयम धर्म की आराधना की गई।जैन अनुयायी में इस महापर्व को लेकर काफी मंदिरों में उत्साह देखा जा रहा है। बच्चे, महिलाएं सभी इस धार्मिक आयोजन में भाग लेकर काफी उत्साहित दिख रहे है।धर्मशाला मंदिर, जन्मभूमि मंदिर,गर्भगृह मन्दिर, वीरशासन धाम तीर्थ, पंच पहाड़ी के सभी मंदिरों में प्रातः पूजन,अभिषेक, शांतिधारा के कार्यक्रम प्रतिदिन आयोजित किये जा रहे है।पर्युषण के छठे दिन सभी भक्तजनों ने प्रातः मंदिर जी में श्री जी को स्वर्ण एवं रजत कलशों से अभिषेक कराया तत्पश्चात देवशास्त्र गुरु की पूजा, समुच्च चौबीसी पूजा, नंदीश्वरद्वीप पूजा, उत्तम संयम धर्म की निर्विध्न पूजा सम्पन्न की तथा संध्या समय महाआरती के पश्चात णमोकार महामंत्र का आयोजन के बाद प्रवचन भक्ति में पर्युषण की महत्ता पर प्रकाश डाला गया।उत्तम संयम धर्म पर बताते हुए रवि कुमार जैन ने कहा कि संयम के पालन से ही सम्यकदर्शन पुष्ट होता है। संयम से ही भव-भव के दुखों से छुटकारा मिल सकता है। वास्तव में संयम ही मोक्ष का मार्ग है। वर्तमान में भी हम जितनी हम अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करते है ,उतना ही हम सुखी रहते हैं। संयम के बिना ये मनुष्य जन्म शून्य के बराबर है। संयम के बिना शरीर का धारण करना , बुद्धि को पा लेना , यहाँ तक कि ज्ञान की आराधना करना दीक्षा धारण करना भी व्यर्थ है। इस संसार में संयम धर्म दुर्लभ है। संयम आत्म उत्थान का प्रथम चरण है। संयम में ही सुख निहित है। संयम विकल्पों के अभाव का नाम है। जीवन में जब संकल्प शक्ति बलवती होती है, तभी विकल्प मिटते हैं। क्रोध, मान, लोभ, मोह के त्याग तथा सत्य की प्राप्ति के बाद सत्य की सुरक्षा भी अपरिहार्य है। सत्य को पाना ही पर्याप्त नहीं है, उसकी सुरक्षा भी आवश्यक है, और सत्य की सुरक्षा संयम के बिना नहीं हो सकती।जीवन वह हीरा है, जिसे संयम की तिजोरी में ही सुरक्षित रखा जा सकता है। संयम की महिमा जगत में वही जानता है, जिसने स्वयं को जीवन में व्यवहारिक रूप से अपनाया है।इस अवसर पर प्रबंधक संजीत जैन ने कहा कि मात्र बाहर शरीर से उपवास कर लेना,भगवान की पूजा-भक्ति कर लेना अथवा दानादि दे देना, वह मात्र धर्म नहीं है। वह धर्म तो आत्मा का स्वभाव है,तो उसका आश्रय लेने से ही प्रगट होगा तथा ये उपवासादि क्रियाएँ उस आत्मा तक पहुंचाने के लिए ही हैं, कि शरीर, धन, परिवार से मोह हटाकर उसकी ओर अपना उपयोग ले जायें और सुख का अनुभव करें। मात्र क्रियाओं के कर लेने से धर्म होता तो अजीव वस्तुओं को भी धर्म होता क्योंकि वो तो निरन्तर ही उपवास करती हैं तथा इन क्रियाओं को करने पर भी कई जीव दुखी देखे जाते हैं; जबकि, धर्म तो सुख का कारण है। अतः, क्रियाओं से दृष्टि हटाकर, आत्मा के पास दृष्टि का आना ही वास्तविक ‘उत्तम संयम धर्म’ है और वही प्रगट करने योग्य है।इस कार्यक्रम में संजीत जैन, मुकेश जैन, आशीष जैन, रवि कुमार जैन, मनोज जैन, चंदन जैन, मनीष जैन, उपेन्द्र जैन, पवन जैन, ज्ञानचंद जैन, अनूप जैन, अशोक जैन, संपत जैन, खुशबू जैन, प्रेमलता जैन, संतोष जैन, शिल्पी जैन, रूपा जैन, गुड़िया जैन, कोमल जैन, नैना जैन, गीता जैन, बविता जैन, आयुषी, रिया, रिमझिम, मुस्कान, संकेत, अमन, गौतम, चीकू, बिट्टू सहित अन्य लोग उपस्थीत थे।
राजगीर में जैन धर्मावलंबियों के 10 दिवसीय पर्युषण महापर्व का छठे दिन उत्तम संयम धर्म की आराधना की गई
Reviewed by News Bihar Tak
on
September 15, 2021
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