नालंदा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ राजगीर की पहाड़ियों पर पहुंच कर उसके संरक्षण से जुड़े तमाम पहलुओं का बारिकी से अध्ययन में जुटे
नालंदा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ राजगीर की पहाड़ियों पर पहुंच कर उसके संरक्षण से जुड़े तमाम पहलुओं का बारिकी से अध्ययन में जुटे
देश के पर्वतीय इलाकों से आए दिन भूस्खलन जैसी खबरें आती रहती हैं। इन घटनाओं के कारण बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है। इसके साथ ही पहाड़ों के पर्यावरण को भी वन आवरण की क्षति और मिट्टी का कटाव जैसे काफी नुकसान होते हैं । ऐसी ही समस्याओं के समाधान को ढूंढ़ने के लिए कुलपति प्रो.सुनैना सिंह के मार्गदर्शन में नालंदा विश्वविद्यालय ने एक अभियान की पहल की है । इस अभियान के तहत विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ राजगीर की पहाड़ियों पर पहुंच कर उसके संरक्षण से जुड़े तमाम पहलुओं का बारिकी से अध्ययन कर रहे हैं।इस अभियान के लिए नालंदा विश्वविद्यालय के पर्यावरण विशेषज्ञों, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और अंतर्विभागीय शोधार्थियों की एक 40 सदस्यीय टीम का गठन किया गया है। इस टीम की अगुवाई स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट स्टडीज के डीन कर रहे हैं,इस टीम ने अभियान के प्रथम चरण के तहत राजगीर के वैभारगिरी पहाड़ पर पहुंच कर पहाड़ से संबंधित पर्यावरण और सांस्कृतिक पहलुओं का बारीकी से अध्ययन किया और अब उसके संरक्षण के उपायों पर विचार-विमर्श और उसका विश्लेषण किया जा रहा है।राजगीर की पहाड़ियों को उनकी प्राकृतिक सुंदरता और हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। वैभारगिरी पहाड़ी की चढ़ाई के दौरान, टीम को पहाड़ों के संरक्षण में रुकावट बनने वाली कई समस्याओं से अवगत कराया गया । टीम ने वैभारगिरी पहाड़ी से मिले आकंड़ों के आधार पर ये पता लगाया है कि कैसे आक्रामक प्रजातियों के अंकुरण, पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों के अवैज्ञानिक दोहन ने पहाड़ी और आसपास के वन क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाया है।इस अभियान का हिस्सा बने स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट स्टडीज के एक शोध छात्र के मुताबिक, “वर्तमान में, कोविड -19 लॉकडाउन में ढील के बाद, पहाड़ पर अब अनियंत्रित तरीके से पर्यटकों का पहुंचना शुरु हो गया है । हालांकि पर्यटन को अर्थव्यवस्था और रोजगार के आधार पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए लेकिन जैव विविधता पर इसके प्रतिकूल प्रभाव, पारिस्थितिकी तंत्र से हो रही छेड़छाड़ की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती है। ” इस अभियान के दौरान, यह पाया गया कि अनियंत्रित पर्यटन ने पहाड़ी क्षेत्रों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है।इस अभियान में शिरकत करने वाले सदस्य, विशेषज्ञ और शोध छात्र राजगीर क्षेत्र के पर्यावरण, पारिस्थितिकी से संबंधित मुद्दों पर भी विचार-विमर्श कर रहे हैं। स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज और स्कूल ऑफ हिस्टॉरिकल स्टडीज के शोध छात्रों की माने तो स्थानीय लोगों को संरक्षण से जुड़े सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं से अवगत कराकर उन्हे जागरुक किया जा सकता है। उन्होने दावा किया कि जागरुक होने के बाद ये स्थानीय समुदाय के लोग पर्यटन संबंधी गतिविधियों के साथ-साथ अपनी विरासत के संरक्षण के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।भारतीय विरासत के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए नालंदा विश्वविद्यालय ने राजगीर की स्थानीय पहाड़ियों की सुरक्षा के लिए यह पहल की है। इस मौके पर विश्वविद्यालय के स्टूडेंट अफेयर्स के कंसलटेंट डायरेक्टर भी टीम के साथ मौजूद रहे और उन्होने भी टीम के साथ अपने अनुभव साझा किये। कुलपति प्रो. सुनैना सिंह ने विश्वविद्यालय की टीम को बधाई दी और उम्मीद जताई कि ये टीम जल्द ही अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल होगी,
नालंदा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ राजगीर की पहाड़ियों पर पहुंच कर उसके संरक्षण से जुड़े तमाम पहलुओं का बारिकी से अध्ययन में जुटे
Reviewed by News Bihar Tak
on
September 06, 2021
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