बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी के मोक्ष कल्याणक पर भक्तों ने चढ़ाया निर्वाण लाड़ू तथा दशवें दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के साथ संपन्न हुआ पर्युषण पर्व
बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी के मोक्ष कल्याणक पर भक्तों ने चढ़ाया निर्वाण लाड़ू तथा दशवें दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के साथ संपन्न हुआ पर्युषण पर्व
जैन धर्मावलंबियों का दस दिवसीय महापर्व पर्युषण विधिवत रूप से सम्पन्न हो गया।भगवान मुनिसुव्रतनाथ स्वामी की चार कल्याणक भूमि श्री राजगृही जी सिद्ध क्षेत्र में इस आयोजन को दस दिनों तक पूरे भक्तिभाव पूर्वक आयोजित किया। सभी जैन अनुयायियों ने दशवें दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना कर बारहवें तीर्थकर देवाधिदेव भगवान वासुपूज्य स्वामी के मोक्ष कल्याणक पर निर्वाण लाड़ू का भव्य कार्यक्रम सभी जैन मंदिरों में आयोजित कर दोपहर 12 बजे से धर्मशाला मंदिर में चौबीसी पूजा का आयोजन रखा गया। इस पूजा में भक्तजनों ने अपने आराध्य देव सभी तीर्थकरों का आव्हान किया तथा दस दिनों तक चले आ रहे व्रतों का भी उद्यापन कर जिनेन्द्र प्रभु से प्रार्थना की।उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पर बताते हुए प्रबंधक संजीत जैन ने बताया कि - जिस प्रकार व्यक्ति के स्वयं के सफर के प्रथम चरण में क्रोध, मान, माया, लोभ, जैसी कषायों को कम करना आवश्यक है, उतना ही आवश्यकता काम रूपी कषाय को भी नियंत्रण करने की है। काम एक ऐसा रोग है जो व्यक्ति का सफर शिखर पर पहुंचकर भी वहीं लाकर पहुंचा देता है, जहाँ से शुरुआत की थी। क्रोध को नियंत्रण करने से शुरू होकर, धीरे धीरे एक एक गुणों को धारण करते हुए सफर त्याग और एकत्व तक पहुंच गया लेकिन यदि काम को नियंत्रण नहीं करा तो वापिस सफर क्रोध पर ही पहुंच जाएगा। जो हीन पुरुष ब्रह्मचर्य व्रत का भंग करता है वह नरक में पड़ता है और वहाँ महान दु:खों को भोगता है। यह जानकर मन, वचन, काय से अनुराग रहित होकर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए।आगे बताते हुए रवि कुमार जैन ने कहा कि आत्मा ही ब्रह्म है उस ब्रह्म स्वरूप आत्मा में चर्या करना ही ब्रह्मचर्य है अथवा गुरु के संघ में रहना भी ब्रह्मचर्य है। इस विधचर्या को करने वाला उत्तम ब्रह्मचारी कहलाता है। अडिग शीलव्रतधारी सेठ सुदर्शन स्वामी ने ब्रह्मचर्याणुव्रत का ही पालन किया था जिससे वे यशस्वी हुए। तथा कमलदल जी गुलजारबाग पटना से मोक्ष को प्राप्त किये। बिना ब्रह्मचर्य के आज तक किसी ने मुक्ति को प्राप्त न किया है और न कर सकते हैं।ऐसा समझकर ब्रह्मचर्य व्रत की उपासना करते हुए अपने आत्मिक सुख को प्राप्त करना चाहिए।क्षमा जिसकी जड़ है, मृतुता स्वंध है,आर्जव शाखायें हैं,उसको सिचित करने वाला शौचधर्म जल है, सत्यधर्म पत्ते हैं, संयम, तप और त्याग रूप पुष्प खिल रहे हैं,आकिञ्चन और ब्रह्मचर्य धर्म रूप सुन्दर मंजरियाँ निकल आई हैं। ऐसा यह धर्मरूप कल्पवृक्ष स्वर्ग और मोक्षरूप फल को देता है। राजगृह जी सिद्ध क्षेत्र पर पर्युषण महापर्व पर अन्य प्रान्तों से काफी तीर्थ यात्री का आगमन होता है तथा तेईस तीर्थंकरों की समोशरण से गुंजित तीर्थ पर दर्शन कर अपने पापों की निर्जरा करते है।इस अवसर पर संजीत जैन, मुकेश जैन, आशीष जैन, रवि कुमार जैन, चंदन जैन, मनीष जैन, उपेन्द्र जैन, पवन जैन, ज्ञानचंद जैन, अनूप जैन, संपत जैन, खुशबू जैन, प्रेमलता जैन, संतोष जैन, शिल्पी जैन, गुड़िया जैन, कोमल जैन, नैना जैन, गीता जैन, आयुषी, रिया, शीतल, स्वाति, मुस्कान, रिमझिम, संकेत, अमन, गौतम, अक्षत, छोटू, बिट्टू , रौशन एवं स्थानीय जैन समाज उपस्थित कार्यक्रम को भव्य रूप से सम्पन्न कराया।
बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी के मोक्ष कल्याणक पर भक्तों ने चढ़ाया निर्वाण लाड़ू तथा दशवें दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के साथ संपन्न हुआ पर्युषण पर्व
Reviewed by News Bihar Tak
on
September 20, 2021
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