सामाजिक विसंगतियों की गहन अनुभूति है श्री ज्ञान की ग़ज़लों में : एम.एस.वाघ
हिंदी ग़ज़ल के साहित्य जगत में एक जाना पहचाना नाम है ज्ञानेंद्र मोहन 'ज्ञान'। हाल ही में उनकी इक्यावन ग़ज़लों का संग्रह 'देहरी पर चिराग़' प्रकाशित हुआ है। श्री ज्ञान वर्तमान में भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय के अधीन आयुध निर्माणी नालंदा, राजगीर में वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं। 'देहरी पर चिराग़' उनका तीसरा ग़ज़ल संग्रह है। इससे पूर्व 2019 में प्रकाशित 'और कब तक' तथा 2020 में 'आखिर कैसे हल निकलेगा' भी चर्चा में रहे। इस ग़ज़ल संग्रह 'देहरी पर चिराग़' पर आयुध निर्माणी नालंदा के महाप्रबंधक मनोज श्रीधर वाघ की टिप्पणी ग़ज़ल संग्रह की समीक्षा की दृष्टि से पठनीय है। उनके अनुसार श्री ज्ञान मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करने की गहरी पकड़ रखते हैं। सामाजिक विसंगतियों की गहन अनुभूति है उनकी ग़ज़लों में।इसी ग़ज़ल संग्रह से कुछ शेर उद्धृत करते हुए उन्होंने संग्रह की विषयवस्तु को टटोला है। उनका कहना है कि -समाज में प्रेम-सद्भाव कायम हो, यह बात तर्क देकर बताई गई है :
नफ़रतों को छोड़कर मिलते रहो दो-चार से,
यूं न तन्हा जी सकोगे बात को समझा करो।
उन्होंने क्षमा-शीलता को अपने अंदाज़ में बयां किया है :
अब तो न ग़िला है न शिक़ायत है किसी से,
किस-किस ने हमें दर्द दिया भूल गए हैं।
श्री ज्ञान ने अपने सरल, निष्कपट, निश्छल जीवन की खूबी को एक ग़ज़ल के मतले में समेटते हुए कहा है कि –
मैं आदमी भला हूँ ये दावा नहीं किया।
लेकिन कभी ज़मीर का सौदा नहीं किया।
उनकी क्रियाशील बने रहने की आदत और आशावादी सोच की झलक एक ग़ज़ल के मक़्ते में देखने को मिलती है :
‘ज्ञान’ अफसोस जताएं न दिये बुझने पर,
उनको अब फिर से जलाएं तो कोई बात बने।
जीवन में अपने संकल्प के प्रति दृढ़ निश्चय और विश्वास के चलते सफलता प्राप्त की जा सकती है, ऐसा ही एक शेर देखिए –
कामियाबी क्यों न हासिल हो उसे,
ठान ले मन में अगर इंसान कुछ।
सुख-लोलुपता पर तंज़ कसते हुए उनका कहना है :
‘ज्ञान’ अब उससे उड़ा जाता नहीं,
रोज़ पिंजड़े में जिसे दाना मिला।
दूसरों को सलाह देने के स्थान पर ख़ुद आगे बढ़कर कार्य करने की प्रवृत्ति मनुष्य को बड़ा बनाती है :
हमसे देखा न गया अंधियारा,
देहरी पर चिराग़ धर आए।
कृतज्ञता व्यक्त करने का उनका अनोखा अंदाज़ इस शेर में देखा जा सकता है :
दर्द देने का शुक्रिया उनका,
वरना हमसे न शायरी होती।
जीवन में अक्सर संतोष कर लेने से भी बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान निकल आता है, शेर देखें –
जो मिला है उसी में खुश रहकर,
ख़ुद को मैं ख़ुशनसीब पाता हूँ।
पिता होने की जिम्मेदारी को इंगित करते हुए हर हाल में अपने बच्चों के प्रति स्नेह को चित्रित किय है :
खड़े हैं ‘ज्ञान’ फिर भी वो,
तुम्हारे साथ में हरदम।
श्री ज्ञान द्वारा यह ग़ज़ल-संग्रह 'देहरी पर चिराग़' अपनी माताश्री को समर्पित किय गया है। संग्रह के अंत में माँ के प्रति कही ग़ज़ल का एक शेर कुछ यूं है :
मां के अनुशासन का फल है जीवन जीना सीख लिया,
सही-गलत का निर्णय करना मां ने ही सिखलाया है।
गीत और ग़ज़ल जैसी अलग-अलग विधाओं में अपनी बात को बहुत सहजता के साथ कह लेने की कला श्लाघनीय है। समाज में व्याप्त टूटन के प्रति चिंता के साथ-साथ चिंतना इनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। वे प्रश्न भी करते हैं और उन प्रश्नों का समाधान भी बताते हैं।
श्री ज्ञान जैसे साहित्यकार हमारे आयुध निर्माणी संगठन के गौरव हैं। इसी 30 सितंबर 2021 को अपना सरकारी सेवाकाल पूर्णकर सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। उसके बाद भी वे लगातार 'देहरी पर चिराग़' रखकर समाज को प्रकाश बाँटते रहें।
सामाजिक विसंगतियों की गहन अनुभूति है श्री ज्ञान की ग़ज़लों में : एम.एस.वाघ
Reviewed by News Bihar Tak
on
September 05, 2021
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धन्यवाद : न्यूज़ बिहार तक
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